NGT के आदेश धरे रह गए, ब्रजघाट पर आस्था के नाम पर गंगा फिर हुई प्रदूषित
Hapur, Garhmukteshwar : गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए सरकार की करोड़ों रुपये की योजनाएं और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के कड़े आदेश भी रविवार को हापुड़ के ब्रजघाट पर नज़ारे बदलने में नाकाम साबित हुए। गंगा किनारे जुटी हजारों की भीड़ ने नियम-कायदों को ताक पर रखकर गणपति प्रतिमाओं का खुलेआम गंगा की बीच धारा में विसर्जन किया। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों से पहुंचे श्रद्धालु सुबह से ही घाटों पर जुटने लगे। दिन चढ़ते-चढ़ते यहां मेला सा माहौल बन गया। ढोल-नगाड़ों और जयकारों के बीच लोग नावों में बैठकर गंगा के बीच तक पहुंचे और धार्मिक आस्था के भाव में डूबे मूर्तियां प्रवाहित करते गए।
पुलिस और प्रशासन की नाकामी उजागर
गंगा को बचाने और NGT के आदेशों को लागू कराने की जिम्मेदारी प्रशासन की है। घाटों पर पुलिसकर्मियों की तैनाती जरूर थी, लेकिन वे भीड़ को रोकने के बजाय मूकदर्शक बने रहे। न तो कोई रोकथाम हुई, न ही किसी पर कार्रवाई की गई। आस्था के उत्साह के सामने प्रशासनिक सख्ती पूरी तरह नदारद रही। यह नज़ारा इस बात का प्रमाण था कि भीड़ के सामने व्यवस्था कितनी कमजोर हो जाती है।
एसडीएम ने मानी लापरवाही
जब इस घटना पर सवाल उठे तो एसडीएम गढ़ श्रीराम यादव ने माना कि भीड़ के दबाव में गंगा की बीच धारा में प्रतिमाओं का विसर्जन हुआ। उन्होंने कहा, “एनजीटी के आदेश का उल्लंघन गंभीर मामला है। वैकल्पिक व्यवस्था के बावजूद विसर्जन बीच धारा में हुआ है। इस पर रिपोर्ट तलब की गई है और जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई होगी।”
गंगा सफाई अभियान पर सवाल
गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने के लिए सरकार लंबे समय से ‘गंगा एक्शन प्लान’ और ‘नमामि गंगे’ जैसी योजनाएं चला रही है। इन योजनाओं पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। इसके बावजूद हालात में खास सुधार नहीं दिख रहा। ब्रजघाट की घटना ने साफ कर दिया कि पर्यावरण संरक्षण के नियम कागजों पर ही सख्त हैं, जबकि जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। सवाल यह भी है कि क्या धार्मिक आयोजनों के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना यूं ही नजरअंदाज किया जाएगा?
ब्रजघाट की यह घटना केवल एक दिन का नजारा नहीं, बल्कि व्यवस्था की कमजोरियों का आईना है। अगर गंगा को वास्तव में प्रदूषणमुक्त बनाना है, तो आदेशों का कड़ाई से पालन और प्रशासनिक जिम्मेदारी तय करना जरूरी है। वरना गंगा सफाई अभियान महज़ एक राजनीतिक नारा बनकर रह जाएगा और गंगा, आस्था के नाम पर प्रदूषण का शिकार होती रहेगी।